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قلبم چو یاد نوحۀ پارینه میکند |
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دل غوره میکند شگاف سینه مــــیکند |
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نوک زبان زمزمه ها میکند درود |
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گوشم نوای صوت شب خینه میکند |
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آواز دل نشین به آهنگ آن زمان |
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شرشر جهیل سیـــنه با سفینه میکند |
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در خلوتم نشسته گوش دار آن صدا |
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اُستادی مساعد چنـین زمینه
میکند |
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بین کوکبان و مهر هنر را که یکایک |
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در بحر هنر جلوه چو آیـــینه میکند |
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اندیشه به پرواز شد ز کعبۀ قلبم |
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گویا که قـــصد هجرت مدینه میکند |
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کلکان هنردوست سر دهولک و ستار |
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گوشم ز سمعتش ســـــیری نمیکند |
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آهنگی گرام به یاد دیرینه میکند |
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سوراخ و جـــگرپارهگی ام پینه میکند |